Indian Spiritual Leader Osho Biography in Hindi

By Mohit Sir 5 Min Read

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Osho Biography in Hindi

ओशो का असली नाम चन्द्र मोहन जैन था, उनका जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव, कुचवाड़ा में हुआ। पिता की माता के निधन के बाद ओशो अपनी माँ के माता-पिता के साथ रहने चले गए। बचपन से ही ओशो के विचार और व्यक्तित्व बोल्ड और जिज्ञासापूर्ण थे। वे अक्सर परंपरागत तरीकों पर सवाल उठाते रहते थे।

ओशो की शिक्षा

ओशो ने कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई की और दर्शनशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्रियां हासिल कीं। उन्होंने कुछ समय तक जबलपुर के हितकारीनी कॉलेज में पढ़ाया, लेकिन वहाँ एक प्रोफेसर के साथ विवाद होने पर उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा।

आध्यात्मिक जागरण और प्रारंभिक करियर

21 वर्ष की उम्र में, 21 मार्च 1953 को ओशो को एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति हुई, जिसने उनके जीवन को बदल दिया। इसके बाद उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक व्याख्यान देना शुरू किया और दर्शनशास्त्र पढ़ाना शुरू किया। 1960 के दशक में, वे आचार्य रजनीश के नाम से मशहूर हुए और बाद में उन्हें भगवान श्री रजनीश कहा जाने लगा। उन्होंने पहले ध्यान केंद्र और शिविर शुरू किए, जहाँ लोग ध्यान की शिक्षा ले सकते थे, और ये उनकी आगे की शिक्षाओं का आधार बने।

पुणे में रजनीश आंदोलन की शुरुआत

1974 में, ओशो ने पुणे, भारत में अपना आश्रम स्थापित किया। यह आश्रम विशेष रूप से पश्चिमी देशों के लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया। यहाँ उन्होंने कई प्रकार के ध्यान की तकनीकों को सिखाया, जिनमें से उनका प्रसिद्ध “डायनामिक मेडिटेशन” भी शामिल था, जो तेज साँस लेने और संगीत के साथ शरीर को मुक्त करने पर आधारित था।

विवाद और अमेरिका में प्रवास

ओशो के धर्म और कामुकता जैसे विषयों पर विचार अक्सर विवाद का कारण बने। 1981 में, वे अमेरिका चले गए और ओरेगन में एक बड़ा कम्यून स्थापित किया, जिसे राजनीशपुरम के नाम से जाना गया। यह कम्यून कानूनी और सामाजिक विवादों में घिर गया, जिनमें एक जैव-आतंकी हमला और हत्या की साजिश जैसे गंभीर मुद्दे शामिल थे। इन घटनाओं के चलते कुछ सदस्यों की गिरफ्तारी हुई।

भारत वापसी और अंतिम समय

1985 में, अमेरिकी इमिग्रेशन नियमों का उल्लंघन मानते हुए ओशो को देश से निकाल दिया गया। इसके बाद वे 1986 में भारत लौट आए और पुणे के अपने आश्रम में शिक्षाएं देना फिर से शुरू कर दिया। 1989 में, उन्होंने बौद्ध नाम “ओशो” अपनाया। उनकी सेहत लगातार बिगड़ती गई और अंततः 19 जनवरी 1990 को पुणे में उनका निधन हो गया।

ओशो की विरासत और प्रभाव

ओशो की शिक्षाओं ने आधुनिक आध्यात्मिकता पर गहरा प्रभाव डाला। उनके विचार आत्म-खोज, स्वतंत्रता, और गहरी आत्म-चिंतन की दिशा में प्रेरित करते थे, जो पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं को चुनौती देते थे। ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, जो उनकी मृत्यु से पहले स्थापित हुआ था, आज भी उनकी शिक्षाओं को दुनियाभर में फैलाने का काम कर रहा है।

ओशो का जीवन और उनके विचार आज भी लोगों के लिए जिज्ञासा और चर्चा का विषय बने हुए हैं, और लोग उनके अनोखे और कभी-कभी विवादास्पद आध्यात्मिक नेतृत्व की भूमिका को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

तो यह है Osho Biography in Hindi के बारे में सारी जानकारी। आप इसे अपनी इच्छानुसार उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं।

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Mohit is a skilled Content Writer with 3+ years of experience in media and digital platforms. After two years with Fast Khabar, he now writes for Hindijankaripur, focusing on education news.
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